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    इलाहाबाद उच्च न्यायालय

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    भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम १८६१, ने वर्ष १८६२ में कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे के उच्च न्यायालयों की स्थापना की। इंग्लैंड की महारानी में यह शक्ति निहित थी कि वे प्रेसीडेन्सी टाउन न्यायालय जैसे समान शक्तियों वाले अन्य उच्च न्यायालयों की स्थापना के लिए पत्र पेटेंट जारी करें। इस शक्ति के द्वारा, १७ मार्च १८६६ को आगरा में उत्तर पश्चिमी प्रांतों के लिए एक उच्च न्यायालय की स्थापना की गई, जिसने सदर दीवानी अदालत की जगह ली। सर वाल्टर मॉर्गन, बैरिस्टर-एट-लॉ को उत्तर पश्चिमी प्रांतों के उच्च न्यायालय का पहला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। वर्ष १८६९ में इसे इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया था। ११ मार्च १९१९ के एक पूरक पत्र पेटेंट द्वारा इस न्यायालय को “इलाहाबाद में उच्च न्यायालय का न्यायाधिकरण” के रुप में परिभाषित किया गया। अवध अधिनियम, १९२५ न्यायालय (१९२५ का संयुक्त प्रांत अधिनियम IV) को संयुक्त प्रांत विधानमंडल द्वारा गवर्नर-जनरल की मंजूरी के साथ पारित किया गया था। इसने पहले से स्थापित अवध न्यायालय अधिनियम को समाप्त कर दिया, और ५ न्यायाधीशों (एक मुख्य न्यायाधीश और ४ अवर न्यायाधीशों) के साथ: अवध के लिए एक मुख्य न्यायालय की स्थापना की। भारत सरकार अधिनियम, १९३५ की धारा २२९ के तहत गवर्नर-जनरल द्वारा जारी संयुक्त प्रांत उच्च न्यायालय (समामेलन) आदेश, १९४८, के द्वारा अवध मुख्य न्यायालय को इलाहाबाद उच्च न्यायालय मे समामेलित कर दिया गया था, जिसमें प्रारंभिक रुप से ६ न्यायाधीश कार्यरत थे।luknow

    उत्तर पश्चिमी प्रांतों के लिए उच्च न्यायालय ने आगरा में एक भवन से अपना कार्य शुरू किया और बाद में १८६९ में इलाहाबाद में स्थानांतरित कर दिया गया। सर वाल्टर मॉर्गन इस न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश थे तथा श्री शाह मोहम्मद सुलेमान, पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश और आजादी के बाद पहले मुख्य न्यायाधीश श्री बिधु भूषण मलिक बने।१९११ में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सर जॉन स्टेनली द्वारा उच्च न्यायालय के वर्तमान भवन की आधारशिला रखी गई थी। भवन का निर्माण वर्ष १९१४ में शुरू हुआ और १९१६ में पूरा हुआ। २७ नवंबर १९१६ को अदालत को वर्तमान भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। जनवरी २०१९ में, आधुनिक सुविधाओं के साथ ३० कोर्ट रूम भवनों को कार्यात्मक बनाया गया था।
    वर्तमान में, माननीय न्यायाधीश के कोर्ट रुम और चैंबर के अतिरिक्त ९१ कोर्ट रुम और ९६ चैंबर्स हैं। १९६६ में आयोजित उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह के दौरान स्थायी आधार पर एक संग्रहालय की स्थापना की गई थी, जिससे संग्रहालय बनाने वाला यह पहला उच्च न्यायालय बना। संग्रहालय में न्यायिक निर्णय, दस्तावेज, तस्वीर, परिधान, फ़र्नीचर और महारानी विक्टोरिया का १७ मार्च १८६६ का वास्तविक घोषणा पत्र, जिसके द्वारा उच्च न्यायालय का निर्माण और स्थापना की गई थी, का एक समृद्ध संग्रह है।
    समय के साथ तालमेल बनाने और अभिलेखों के डिजिटलीकरण करने के लिए एक अलग भवन, जिसे सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में जाना जाता है, मार्च २०१६ में शुरू किया गया था और यह अत्याधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी निर्माण में देश के सबसे प्रभावशाली और आधुनिक भवन के रूप में खड़ा है।
    उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में न्यायालय की एक स्थायी पीठ स्थापित है। ४० एकड़ भूमि पर लखनऊ के गोमती नगर में उच्च न्यायालय के एक नए भवन का निर्माण किया गया है, जिसमें ५७ कोर्ट रूम हैं और सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। ३० जून २०२० तक, न्यायालय की १६० न्यायधीशों की क्षमता के सापेक्ष, १०२ न्यायधीश ही कार्य का वहन कर रहें है।

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