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    लक्ष्य और उद्देश्य

    मूलभूत सिद्घान्त:

    • सशक्तीकरण” और “सक्षम बनाने के लिए” प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाना चाहिए।

    • प्रौद्योगिकी को केवल पारंपरिक तरीकों और प्रक्रियाओं के स्वचालन के बारे में नहीं होना चाहिए बल्कि रूपांतरण का साधन होना चाहिए। यह एक बल है, जो सभी नागरिकों को “शसक्त” और “सक्षम बनाता है”.

    • प्रत्येक व्यक्ति के लिए न्याय की पहुँच को सुनिश्चित करना

    • प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी डिजिटल डिवाइडया अन्य सामाजिकआर्थिक चुनौतियों से अप्रभावित निवारण और राहत के लिए न्यायिक संस्था का दरवाजा खटखटाने के साधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

    • एक कुशल और उत्तरदायी न्यायिक प्रणाली का निर्माण

    • न्यायिक प्रणाली को न केवल त्वरित न्याय प्रदान करने के लिए बल्कि न्यायपालिका की क्षमताओं और प्रभावशीलता की निगरानी और जानकारी के लिए दक्षता मेट्रिक्सके विकास को सक्षम करने वाली प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।

    उद्देश्यः

    कमेटी इन उद्देश्यों द्वारा निर्देशित है:

    • देश भर के सभी न्यायालयों को जोड़ना

    • भारतीय न्यायिक प्रणाली में आई.सी.टी. को सक्षम बनाना

    • गुणवत्ता और मात्रात्मक दोनों ही प्रकार से न्यायिक उत्पादकता बढ़ाने के लिए न्यायालयों को सक्षम बनाना

    • न्याय वितरण प्रणाली को सुलभ, लागतप्रभावी, पारदर्शी और जवाबदेह बनाना।

    द्वितीय चरण के उद्देश्य:

    • विभिन्न सेवा प्रदायगी चैनलों जैसे कियोस्क, वेब पोर्टल, मोबाइल ऐप, मेल, एस.एम.एस. पुल, एस.एम.एस. द्वारा वादकारियों के लिए वाद की सूचना का सरल प्रसार।

    • अधिवक्ताओं के लिए वादों की योजना और अनुसूचन

    • वादों के अधिभार का प्रबंधन के साथ न्यायिक अधिकारियों के लिए वाद प्रबंधन

    • प्रधान और अन्य जिला न्यायाधीशों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए पर्यवेक्षी और निगरानी सुविधाएं

    • राज्यव्यापी पर्यवेक्षण और उच्च न्यायालयों, न्याय विभाग, शोधकर्मियों और शिक्षाविदों द्वारा प्रत्येक जिले और तालुका में मामलों की निगरानी।

    • न्याय वितरण प्रणाली में प्रणालीगत सुधार की योजना बनाना